कोई बन्टी समझता है कोई बबली समझता है,
मगर कुर्सी की बैचनी तो बस "कजरी" समझता है,
मैं कुर्सी से दूर कैसे हुँ मुझसे कुर्सी दूर कैसी है,
फकत शीला समझती है या मेरा दिल समझता है,
सत्ता एक अहसासों की पावन सी कहानी है,
कभी शीला दीवानी थी कभी कजरी दीवानी थी,
यहाँ सब लोग कहते है कजरी सत्ता का पियासु है,
अगर समझो तो ढोंगी है ना समझो तो शाधु है,
समंदर पीर का अंदर है मगर वो रो नहीं सकता,
ये बंगला और ये गाड़ी, मै इसको खो नहीं सकता,
मेरी चाहत को तू दुल्हन बना लेना,मगर सुन ले,
जो शीला का हो न पाया, वो मेरा हो नहीं सकता,
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