समझा दो अपनी यादों को!
वो बिना बुलाये पास आया करती है!
आप तो दूर रहकर सताते हो मगर!
वो पास आकर रुलाया करती है!
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किनारे पर तैरने वाली लाश को देखकर ये समझ आया ..
बोझ शरीर का नही साँसों का था..
सर झुकाने से नमाज़ें अदा नहीं होती...!!!
दिल झुकाना पड़ता है इबादत के लिए...
पहले मैं होशियार था, इसलिए
दुनिया बदलने चला था,
आज मैं समझदार हूँ,
इसलिए खुद को बदल रहा हूँ.
बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है.
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना.
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच
कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन
क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने
न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले !!
तुम करोगे याद इस प्यार के जामने को ,
चले जाएंगे जब हम कभी ना वापस आने को ,
करेगा महफ़िल में जब जिक्र हमारा कोई ,
तब तुम भी तन्हाई ढूँढोगे आंसू बहाने को।
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वो रात दर्द और सीतम रात होगी,
जिस रात रुक्सत उनकी बारात होगी,
उठ जाता हूँ मैं ये सोचकर नींद से अकसर,
की एक ग़ैर की बाँहो में मेरी सारी कायनात होगी।
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दिल से मिले दिल तो सजा देते है लोग.,
प्यार के जज्बातो को डुबा देते है लोग.
दो इँसानो को मिलते कैसे देख सकते है.,
जब साथ बैठे दो परिन्दो को भी उठा देते है लोग.
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